नकली खल से कपास का उत्पादन घटेगा

नई दिल्ली, 14 मार्च  (एनएनएस) गुजरात महाराष्ट्र हरियाणा का मुख्य फसल कपास है, लेकिन नकली खल की बिक्री जोरों पर होने से इसका उत्पादन भविष्य में और घट सकता है, जिससे पशु आहार की भारी कील्लत बन जाएगी। इसे रोकने के लिए सरकार को कड़ा कानून बनाना चाहिए, क्योंकि 60 प्रतिशत बिनौला में खल निकलता है।

पूर्व में केंद्र सरकार द्वारा किसानों को आश्वासन दिया गया था कि कपास समर्थन मूल्य से नीचे नहीं बिकने देंगे तथा 5 साल की गारंटी देंगे और समर्थन मूल्य से नीचे आएगी तो सरकार खरीदेगी, लेकिन ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है। इधर नकली खल धड़ल्ले से बिक रहा है, जिससे किसानों का बिनोला सस्ता बिकने लगा है। बिनौला खल, सीड को प्रोसेसिंग करने पर 60 प्रतिशत निकलता है, जो पशु आहार के काम आता है तथा देश में 80 प्रतिशत दुधारू पशु बिनौला खल ही खाते हैं। वायदा कारोबार व अन्य जगहों में बिनौला खल का स्टॉक प्रचुर मात्रा में पड़ा हुआ है, जिसमें नकली एवं असली की पहचान मुश्किल हो गई है। अत: सरकार को पशुओं को खाने वाले बिनौले खल पर सख्ती करनी चाहिए। यह भी चर्चा है कि केमिकल आदि अन्य रसायनों का प्रयोग करके बिनौला खल भर दिया जाता है जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है। वर्ष 1985-86 में इसी तरह सरसों खल में मिलावट होती थी, जिससे उत्तर प्रदेश सरकार ने कड़ी कार्यवाही करके उसको बंद करा दिया। पिछले दिनों गुजरात ट्रेड एसोसिएशन ने सरकार के सामने मिलावटी खल का प्रस्ताव रखा था जिसे सरकार ने आपराधिक मामला बताया। विशेषज्ञों का कहना है कि नकली खल जहां बनाई जा रही है, उसी जगह पर कार्यवाही करनी चाहिए तथा खाद्य पदार्थों की तरह खल बनाने वालों पर भी लाइसेंस लागू करना चाहिए, क्योंकि यह बेजुबान पशु ऑन को खिलाया जाता है। इसके सेवन से विभिन्न तरह की बीमारियां पैदा होती है। इसकी वजह से पिछले 3 महीने से कपास की बिक्री किसानों द्वारा समर्थन मूल्य से की जा रही है। कपास का उत्पादन 294 लाख गाठों का हुआ है, जिसमें 210 लाख गांठ के करीब किसान समर्थन मूल्य से नीचे बेच चुके हैं। अत:  किसानों एवं उद्योग के हित में नकली खल पर कड़ा कानून बनाना आवश्यक है।

About Post Author