जीरा-पूरे वर्ष 10 रुपए ऊपर-नीचे चलेगा

नई दिल्ली, 1 अप्रैल (एनएनएस) जीरे का उत्पादन अधिक होने तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय जीरे का निर्यात पड़ता महंगा होने से लंबी तेजी पूरे वर्ष दिखाई नहीं दे रही है तथा व्यापारियों का अनुमान है कि यह 10 रुपए ऊपर-नीचे चलता रहेगा। अत: इस बार स्टॉक की बजाय मजूरी का काम करते रहना चाहिए।

राजस्थान की फसल जोधपुर बाड़मेर बीकानेर लाइन में आनी बाकी है, उससे पहले ऊंझा मेहसाणा काठियावाड़ सहित पूरे सौराष्ट्र में जीरे का स्टॉक मंडियों में भरा पड़ा है तथा अभी किसी माल का आवक कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। यही कारण है कि वहां एवरेज जीरा के भाव 5150/5300 रुपए प्रति 20 किलो के बीच चल रहे हैं। गौरतलब है कि गत सीजन में जीरे के रिकॉर्ड भाव होने एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में ऊंचे भाव को देखकर इस बार गुजरात एवं राजस्थान दोनों ही राज्यों के किसानों ने जीरे की बिजाई अधिक किए थे। दूसरी ओर पिछले सीजन का जीरा भी अधिक बचा है, क्योंकि भारी तेजी में कारोबारी 1000 रुपए प्रति किलो की धारणा में सट्टे में माल खरीदते चले गए थे, जो दिसंबर-जनवरी में आकर अटक गया। दूसरी ओर खरीद किए हुए माल 625/650 रुपए प्रति किलो वाले कारोबारियों को 335/340 रुपए में काटने पड़े। उन मालों के भाव इस समय बाजार में 280/290 रुपए प्रति किलो के बीच चल रहे हैं। एवरेज माल 310/320 रुपए बिक रहे हैं तथा सिलेक्टेड माल 360/365 रुपए यहां चल रहे हैं। वास्तविकता यह है कि वायदा बाजार में जो भी स्टॉक पड़ा था, उसकी भी डिलीवरी चल रही है। दूसरी ओर नया माल भी आने लगा है तथा जो तेजी में माल गले में फंसे थे, उसमें कारोबारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान लगा है, जिसका भुगतान खटाई में पड़ा हुआ है तथा बाजारों में भारी डिफरेंस होने के चलते झगड़ा पड़ रहे हैं, इन सारी परिस्थितियों से निकट में तेजी की बिल्कुल गुंजाइश नहीं है। अभी अप्रैल के जीरे बिके हुए हैं, जिसकी डिलीवरी लगने लगी है तथा राजस्थान के जोधपुर बाड़मेर लाइन में कटाई शुरू हो गई है तथा वहां भी माल आने लगा है। व्यापारी वर्ग को चिंता यह है कि राजस्थान के जोधपुर लाइन का माल कहां खपेगा, गुजरात की अपेक्षा राजस्थान के माल क्वालिटी में उन्नीस रहता है, जिससे उन मालों के आने पर बाजार एक बार और घट सकता है तथा दूरगामी परिणाम ज्यादा तेजी का दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि वायदा बाजार में मंदे भाव को दिखाकर एक बार बड़े सटोरिये मिली भगत से आगे बाजार को बढ़ाने की कोशिश करेंगे, लेकिन जब भी 10/12 रुपए प्रति किलो की तेजी आए, कारोबारियों को माल बेचकर निकल जाना चाहिए, क्योंकि उत्पादन एवं निर्यात दोनों को देखते हुए लम्बी तेजी का कोई लॉजिक नहीं बनता है।

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